कोरोना के सामने अमेरिका क्यों पस्त हो गया?

कोरोना के सामने अमेरिका क्यों पस्त हो गया?

रोहित पाल

कोरोना वायरस जो लगभग पूरी दुनिया को अपनी गिरफ्त में ले चुका है। सारे देश इस वायरस के सामने बेबस हैं। लेकिन अब कोरोना के सामने दुनिया का सबसे शक्तिशाली देश और सबसे धनो देश भी बेबस नजर आ रहा है। अस्पताल और स्वास्थ्य सेवाओं के मामले में वहां तीसरी दुनिया कहे जाने वाले देशों जैसी लाचारी दिख रही है। हमेशा से महामारियों, बीमारियों और आपदा के समय दुनिया का सहारा बनने वाला देश अमेरिका अब खुद ही बेसहारा सा दिख रहा है।

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आलम यह है कि दुनिया में वित्तीय राजधानी मने जाने वाले न्यूयॉर्क में लाशों को सामूहिक रूप से दफनाया जा रहा है। मिडिया बार-बार राष्ट्रपति से सवाल भी कर रहा है। मिडिया ट्रंप और चीन दोनों को कोस रहे हैं। जानकारों के आंकलन के अनुसार अमेरिका की स्थिति बिगड़ने में ट्रंप और प्रशासन की गलती तो है ही साथ ही पिछले दो दशकों से चली आ रही अमेरिकी नीतियां को भी जिम्मेदार मान सकते हैं।

पिछले कई सालों से हर प्रशासन के सामने विशेषज्ञों, सार्वजनिक स्वास्थ्य से जुड़ी रिपोर्टों और खुफिया अधिकारियों ने कोरोना वायरस जैसी महामारी की बीमारी के बारे आगाह किया है, उसके खिलाफ तैयार रहने की सलाह दी है। लेकिन हर बार आने वाले नए राष्ट्रपति ने पुराने राष्ट्रपति की सलाहों को नजरअंदाज किया और विपदा यानी मुसीबत आई तब खुद को तैयार किया और जैसे ही मुसीबत टली वैसे ही पुराने तौर-तरीकों पर चलने लगे।  

राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने 1998 में जैविक हथियारों से हमलों और इस तरह की महामारियों के खिलाफ तैयारी के लिए स्वास्थ्य उपकरणों और स्वास्थ्यकर्मियों के लिए सुरक्षित कपड़ों और मास्क का आपातकालीन भंडार तैयार करने के लिए एक उच्च अधिकारी की नियुक्ति की थी। राष्ट्रपति बुश ने 2001 में सत्ता संभालते ही उस पद को खत्म कर दिया लेकिन ग्यारह सितंबर के हमले के बाद उनकी नीति भी बदली। अमेरिका जैविक और रासायनिक हथियारों के खतरे के प्रति सचेत हुआ। कुछ ही दिनों में बुश प्रशासन ने सार्स बीमारी का सामना किया और अपने अनुभवों को अगले राष्ट्रपति ओबामा के साथ साझा किया। लेकिन ओबामा ने भी पहले उसे नजरअंदाज ही किया। ये वही ओबामा थे जिन्होंने छह साल पहले एक सेनेटर के रूप में न्यूयॉर्क टाइम्स में लेख लिखकर इस तरह की महामारी के खिलाफ अमेरिका और दुनिया को तैयार रहने की नसीहत दी थी।

राष्ट्रपति बनने के बाद एच1एन1स्वाइन फ्लू और फिर इबोला वायरस ने उनकी नींद तोड़ी। उन्होंने इस तरह बीमारियों के खिलाफ लड़ाई के रहने के लिए नीति तैयार की जिसके तहत एक अलग विभाग का भी गठन हुआ। उन्होंने ऐसी निति तैयार की जिसका मकसद सिर्फ अमेरिका को ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया को  विपदा के खिलाफ तैयार रखना था।

जब ओबामा ने व्हाइट हाउस तब उनकी टीम ने  पहले राष्ट्रपति ट्रंप की टीम के साथ मिलकर एक काल्पनिक महामारी के खिलाफ अभ्यास भी किया और एक पूरी रणनीति उनके सुपुर्द की। सत्ता संभालते ही ट्रंप की टीम ने इस पर ध्यान नहीं दिया और पिछले साल ट्रंप के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जॉन बॉल्टन ने ओबामा के बनाए ग्लोबल हेल्थ सेक्योरिटी ऐंड बायोडिफेंस विभाग को ही खत्म कर दिया।

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यही नहीं अमेरिका और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर महामारियों और बीमारियों को रोकने के लिए 1946 में बनी संस्था सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल (सीडीसी) का बजट (मुद्रास्फीती को ध्यान में रखते हुए) घटता ही चला गया है। जानकारी के अनुसार स्वास्थ्य मंत्रालय ने सीडीसी के लिए ट्रंप सरकार से डेढ़ अरब डॉलर की मांग की थी, लेकिन केवल आधा बजट मिला। इसके बाद कोरोना वायरस की जांच के लिए बड़े स्तर पर टेस्टिंग के लिए सीडीसी ने जो किट बनाया वह पूरी तरह से असफल रहीं और उसके बाद प्राइवेट कंपनियों के बनाए किटों के इस्तेमाल पर लगी पाबंदियां हटाई गईं। लेकिन इन सब के बीच वायरस अमेरिका को अपनी चपेट में ले चुका था।

 

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